लेखनी कविता रचना प्रतियोगिता -09-Jun-2022
मां गंगा पर एक गीत
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सदा धड़कनों में हमारी हैं गंगा
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भगीरथ के घनघोर तप से
जटाओं में शिव की उलझ के
धरती का कण, कण तारी हैं गंगा
सदा धड़कनों में हमारी हैं गंगा
हिमालय के हिम खण्डों में जम गई
गंगोत्री का गोमुख उदगम भई
शुद्धता लिए श्वेत सारी हैं गंगा
सदा धड़कनों......
शिलाओं को काटते आगे बढ़ी
शिफाओं को बांटते मन में चढ़ीं
गरीबों की दु:खहारी हैं गंगा
सदा धड़कनों.....
ऋषियों, मुनियों को हर इक ज्ञान दे
पशु, पक्षी, पेंड़, पौधे सब को प्रान दे
जीवन अनेकों संवारी है गंगा
सदा धड़कनों......
हरिद्वार में फिर हरि से मिलीं
प्रयाग में तो पापों को धुलीं
पापियों की प्राण प्यारी हैं गंगा
सदा धड़कनों........
भोले की भभूत लेने काशी में आयीं
पापी प्राणियों की वो परम धूल पायीं
प्यार से कैसे पखारी हैं गंगा
सदा धड़कनों में.......
गंगा पवित्र हैं औ पावन हैं
परमपिता की मन भावना हैं
गंदगी, बन्दगी से हारी हैं गंगा
सदा धड़कनों में........
युगों, युगों तक दिल में सजाओ इनको
धरती के विनाश तक बचाओ इनको
मृदु हैं मृदुल हैं मनोहारी हैं गंगा
सदा धड़कनों में.....
बूंद, बूंद प्राण है जीवन है जल
लुप्त हो गई तो पछताओगे कल
खालिद की खाक सारी हैं गंगा
सदा धड़कनों में....
खालिद हुसैन सिद्दीकी
मुलायम नगर कालोनी
इस्माइलगंज लखनऊ उ. प्र.
मो. नं... 6391225295
यह रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है ,और सर्वाधिकार सुरक्षित है |
आज दिनांक 8//2022 की लेखनी कविता रचना प्रतियोगिता में शामिल करने के लिए
Seema Priyadarshini sahay
11-Jun-2022 05:40 PM
बेहतरीन
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Gunjan Kamal
10-Jun-2022 04:18 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Swati chourasia
09-Jun-2022 07:18 PM
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌
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